प्रेम विस्तार है और स्वार्थ सकुंचन

अभी हाल ही में heartfulness.org द्वारा एक निबंध प्रतियोगिता का आयोजन हुआ, कुछ तकनिकी बाधाओं के कारण मैं अपना निबंध जमा नहीं कर पाया तो सोचा कि क्यों न अपने ब्लॉग से ही पोस्ट कर दूँ |

निबंध के विषय को पढ़ते ही मुझे कबीर का एक दोहा याद आता है,

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

कबीर प्रेम की परिभाषा और वर्चस्व को खूब समझते हैं | वे कहते हैं कि यदि मनुष्य प्रेम नहीं समझता तो फिर दुनियाभर के ग्रन्थ पढ़ने का कोई मतलब नहीं है | मेरे जीवन में गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित लघु कथाओं का बहुत महत्त्व रहा है | बचपन में पढ़ी एक कहानी याद आती है, संछिप्त में साझा करता हूँ |

एक बार एक महाशय सभी वेदों का ज्ञान प्राप्त कर अपने गाँव लौट रहे थे | रास्ते में सोचा कि थोड़ा विश्राम कर लें | उनकी दृष्टि सड़क किनारे एक झोपड़ी पर पड़ी | वहाँ एक बूढी महिला रहती थी | उन्होंने बुढ़िया से दो पहर रुकने की विनती की | उसने ये आग्रह स्वीकार किया और उनके ठहरने का बंदोबस्त किया |

कुछ समय बाद, बुढ़िया ने अपनी महरी से कहा , “कल सड़क दुर्घटना में बगल वाले गाँव के निवासी धनप्रकाश और धर्मप्रकाश की मृत्यु हो गयी है, जाकर पता करके आ कि वे स्वर्ग गए हैं या नर्क |” महाशय अपने कमरे से ये बातचीत सुनकर बड़े चकित हुए | वर्षों तक उन्होंने वेदों का पाठ किया पर ये विद्या नहीं सीखी | कुछ ही घंटों में महरी लौटकर आयी और बताया, “अम्मा, धनप्रकाश को नरक में स्थान मिला है जबकि धर्मप्रकाश को स्वर्गप्राप्ति हुई है |

महरी की बात सुनकर महाशय से अब रहा न गया, बुढ़िया के सामने जाकर अपनी दुविधा रखी | बुढ़िया ने हंसकर बताया कि ये तो सबसे सरल विद्या है | जब महरी धनप्रकाश के घर गयी, उसकी मृत्यु से आस पड़ोस वाले बिलकुल दुखी नहीं थे | लोग आपस में बात कर रहे थे कि कैसे धनप्रकाश सभी के साथ बदसलूकी से पेश आता था | घर में कैसे उसकी वजह से कलह का माहौल रहता था | लेकिन जब महरी धर्मप्रकाश के घर पहुंची, सभी आस पड़ोस वालों के मुख पर दुःख का भाव था | सभी आखों से उसके लिए आंसू बह रहे थे | लोग उसके सुकर्मों को याद करते और कहते कि भगवान अच्छे लोगों को जल्दी बुला लेता है | “

बुढ़िया ने फिर कहा ” जो सबके संग प्रेम से रहता है, वो सदा ही लोगो के जेहन में जीवित रहता है और उसे ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है, वहीं दूसरी तरफ, जो व्यक्ति सिर्फ अपने बारे में विचार करता है, दूसरों के प्रति सम्मान भाव नहीं रखता, लोग उससे कटने लगते हैं, मृत्युपश्चात भी उसे आदर नहीं मिलता और नरक भोगना पड़ता है | “

इस कहानी ने मुझपर गहरी छाप छोड़ी है | ये तो नहीं कहूंगा कि सभी के प्रति प्रेम व्यव्हार रखने में पूरी तरह सफल रहा | हाँ मगर, हर दिन एक नयी सीढ़ी जरूर चढ़ रहा हूँ | कबीर के निम्नलिखित दोहे पर अमल करने के प्रयास में लगा हुआ हूँ |

ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय |

औरन को शीतल करै, आपहु शीतल होय ||

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है | और समाज में गुज़ारा कर पाने के लिए बेहद आवश्यक है, सबके साथ घुल मिल कर रहना और प्रेम भाव से आपसी सम्बन्ध मजबूत बनाना | कुछ लोग ये गलत धारणा पाल लेते हैं कि चूँकि समाज का दिया नहीं खा रहे इसलिए समाज से उनका कोई वास्ता नहीं बनता, नाही कोई ज़िम्मेदारी बनती है | ऐसी सोच रखने वाले अक्सर ये भूल जाते हैं कि किसी पर कब कैसी विपदा आन पड़े, कोई नहीं जानता और कब किसकी मदद की जरुरत पड़ जाए | तुलसीदास भी इस बात को मानते हैं और अपने दोहे में वे कहते हैं-

तुलसी इस संसार में, भांति-भांति के लोग।

सबसे घुल-मिल चालिए, नदी-नाव संजोग।।

आत्म मुग्ध होकर या अपने स्वार्थ के लिए किये गए काम जीवन की लम्बी दौड़ में बहुत हानिकारक है | कहीं न कहीं हमारी सोच बस अपने तक ही सकुंचित रह जाती है | हर कार्य में हम बस अपने ही लाभ और हानि का हिसाब करते रहते हैं | जबकि प्रेम और नि:स्वार्थता से किये गए कार्य सिर्फ हमारे लिए ही नहीं बल्कि हमारे आस पास के लोगों के लिए लाभकारी होते हैं | और यदि, किसी कारणवश, हमें नुक्सान भी झेलना पड़े, तो उस नुक्सान का बोझ उठाने के लिए पूरा समाज हमारे साथ खड़ा होता है |

अंत में बस इतना ही कहना कि हमें किसी भी प्रकार के जातिवाद, पंथ और धर्म इत्यादि की सीमाओं में ना फंसकर “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना को अपनाकर आगे बढ़ना चाहिए |

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